चंपारण की खबर::भगवान विष्णु को परम प्रिय व समस्त पापों का नाश करने वाला होता है आंवला वृक्ष : सुशील कुमार पांडेय

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मोतिहारी,।

अक्षय नवमी का पुण्य पवित्र पर्व आज गुरुवार को मनाया जाएगा। यह व्रत कार्तिक शुक्लपक्ष नवमी को किया जाता है। इसको करने से समस्त व्रत,पूजन,अनुष्ठान,तर्पण आदि का फल अक्षय हो जाता है। इसीलिए यह पर्व अक्षय नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष के नीचे पूजन कर जड़ में दूध की धारा गिराकर व वृक्ष में सूत लपेटकर आरती करके एक सौ आठ या यथाशक्ति परिक्रमाएँ करने का विधान है। इस दिन वस्त्र-आभूषण आदि का दान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस अवसर पर कुष्मांड (भथुआ) के अन्दर स्वर्ण या द्रव्य आदि रखकर गुप्त दान करने की भी परंपरा है। आज के दिन आंवला वृक्ष की छाया में स्वादिष्ट भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाने तथा सपरिवार प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण करने का पुण्यफलदायक विधान है। इस दिन आंवले का दान भी करना चाहिए।
उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्वकाल में जब सारा संसार जल में निमग्न हो गया था,समस्त चराचर प्राणी नष्ट हो गए थे तो उस समय परमात्मा ब्रह्मा जी परब्रह्म का जप करने लगे थे। परब्रह्म का जप करते-करते उनके आगे श्वास निकला,साथ ही भगवत दर्शन के अनुरागवश उनके नेत्रों से जल निकल आया। प्रेम के आंसुओं से परिपूर्ण वह जल की बूंद पृथ्वी पर गिर पड़ी और उसी से आंवले का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ। इसीलिए उसको आदिरोह कहा जाता है। ब्रह्मा ने पहले आंवले को उत्पन्न किया,उसके बाद समस्त प्रजा की सृष्टि की। जब देवता आदि की सृष्टि हो गई तब वे उस स्थान पर आए जहाँ आंवले का वृक्ष था। उसी समय आकाशवाणी हुयी- यह आंवले का वृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ है क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है।
प्राचार्य ने बताया कि इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। इसके दर्शन से दोगुना और फल खाने से तिगुना पुण्य होता है। इसीलिए सर्वथा प्रयत्न करके आंवले के वृक्ष का रोपण,सिंचन व सेवन करना चाहिए क्योंकि यह भगवान विष्णु को परम प्रिय एवं समस्त पापों का नाश करने वाला होता है। अतः समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिए आंवले के वृक्ष का पूजन करना पुण्यफलदायक होता है।