महर्षि दयानंद सरस्वती की 201 वीं जयंती के अवसर श्रद्धांजलि अर्पित कर किया गए याद।

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जयंती कार्यक्रम के पूर्व वैदिक मंत्रों के उपरांत किया गया हवन पूजा।

जहानाबाद (बिहार) से ब्यूरो चीफ मनोहर सिंह का रिपोर्ट।


जहानाबाद -स्थानीय आर्य समाज मंदिर, जहानाबाद में महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का 201वीं जन्मजयंती समारोह का आयोजन किया गया |
प्रातः 8.30 बजे से वैदिक महायज्ञ का आयोजन किया गया | यज्ञ सुश्री मोनी आर्याणी जी के आचार्यत्व में एवं वेद प्रकाश आर्य जी सपत्नीक यजमान के रूप ने यज्ञ किया। जिसमे स्वस्तिवाचन के मंत्रों का पाठ कर पूरे विश्व के कल्याण की कामना की तथा शांतिप्रकरण के मंत्रों का पाठ कर पूरे विश्व में शांति स्थापित हो इसकी प्रार्थना की | इसके बाद वेद मंत्रों से सबों ने आहुति दी |
इसके बाद वक्ताओं ने स्वामी दयानंद जी के जीवन पर चर्चा करते हुए बतया की स्वामी जी का जन्म देश के ऐसे कालखंड में हुआ जब हमारा देश राजनीतिक रूप से गुलाम था साथ ही सांस्कृतिक रूप से भी उसे गुलाम बना दिया गया था इसके लिए उन्होंने वेदों का अध्ययन कर पूरे देश में वेदों का प्रचार, भारतीय संस्कृति और शिक्षा के गौरव को पुनः स्थापित कर स्वराज्य और स्वदेशी के लिए प्रेरित किया| स्वामी जी ने वेदों को सनातन धर्म का मूल धर्म ग्रंथ बतया क्योंकि वेद आदि ग्रंथ है | उन्होंने वेदों का भाष्य किया, अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश, आर्योंदेशरत्नमाला, गोकरुणानिधि सहित दर्जनों ग्रंथों की रचना की |देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले में स्वामी दयानंद जी की भूमिका महत्वपूर्ण थी उनके ही प्रेरणा से शहीद भगत सिंह, लाला राजपात राय, राम प्रसाद विस्मिल , असफाक उल्लाह खान ये सभी स्वामी जी के विचरों से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदे थे | 1857 की क्रांति की प्रमुख सूत्रधारो में से एक थे। 1855 के हरिद्वार कुंभ में ही 1857 की क्रांति की नींव रखी गई ।
लोगों को सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति के लिए भारतीय शिक्षा और सांकृति से अवगत करा कर उसे पुनः स्थापित किया | विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा, सब को वेद पढ़ने का अधिकार दिया तथा छुआ- छूत, अंधविस्वास को खत्म कर लोगों को तार्किक बनने का संदेश दिया | गोकरुणानिधि नामक पुस्तक की रचना कर गोरक्षिणी सभा का गठन किए और उनके ही प्रेरणा से उस समय के देशी रियासत ने अपने यहां गोरक्षिणी गौ रक्षा और संवर्धन के लिए स्थापित किए।

महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिनके बचपन का नाम मूल शंकर था जो टंकारा गुजरात में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया । उनके पिता श्री कर्षण जी तिवारी एक शिव भक्त थे। मूल शंकर भी शिव भक्त थे लेकिन शिवरात्री के व्रत के बाद वो सच्चे शिव अर्थात परमात्मा की खोज में निकल गए। विभिन्न संतों और गुरुओं के सानिध्य में अध्ययन किया लेकिन वेदों की शिक्षा गुरुवर वीरजानंद दंडी से प्राप्त कर वेदों के प्रचार प्रसार में तथा स्वदेशी और स्वराज्य के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिए । आर्य समाज की स्थापना की | आर्य का अर्थ श्रेष्ठ, आदर्श है सब श्रेष्ठ बने | उनके ही शिष्य हंसराज जी के द्वारा डीएवी स्कूल की स्थापना की गई जो आज शिक्षा का अलख जन जन तक फैला रहा है।

अंत में धन्यबाद ज्ञापन आर्य समाज जहानाबाद के प्रधान अजय कुमार आर्य जी ने किया | कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता डॉक्टर संतोष कुमार, मोनी आर्यानी, वेद प्रकाश आर्य, संजय आर्य ने स्वामी दयानंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम में महेंद्र प्रसाद, आशुतोष जी, सूर्य प्रकाश आर्य, अनिल आर्य, श्री सत्य प्रकाश, इत्यादि गणमान्य लोग मौजूद रहे |