मगध सम्राट महाराजा जरासंध जी की 5227 वीं जयंती समारोह मनाई गई हर्षोल्लास के साथ।

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चंद्रवंशी समाज का इतिहास गौरवशाली : आनंद चंद्रवंशी

जहानाबाद (बिहार) से ब्यूरो चीफ मनोहर सिंह का रिपोर्ट।

जहानाबाद -मगध सम्राट महाराजा जरासंध जी की 5227 वें जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करते हुए पूर्व जिला पार्षद आन॑द कुमार च॑द्रव॑शी ने कहा कि चंद्रवंशी समाज का इतिहास गौरवशाली हैं।त्रेतायुग और द्वापर युग मे चंद्रवंश के अनेकों चंद्रवंशी चक्रवर्ती सम्राट हुए उक्त बातें पूर्व जिला पार्षद आनंद कुमार चंद्रवंशी ने मंझीआंवा ग्राम तथा बेलखरा ग्राम में सम्राट जरासंध पूजा समारोह को संबोधित करते हुए कहा । पूर्व जिला पार्षद ने आगे कहा की चंद्रवंशी शब्द का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा के वंशज होता हैं। हिन्दु धर्म के धार्मिक महाकाव्य महाभारत में चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज के गाथा हैं जो महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है।
चंद्रवंशी कुल का उदय ऋषि अत्रि और देवी अनुसूइया के पुत्र ‘सोम’ यानी ‘चंद्र’ से हुआ है। चंद्र के पुत्र बुध हुए थे, बुध की पत्नी इला थी, जो राजा मनु की पुत्री थी, बुध इला के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट महाराज पुरूरवा हुए। राजा पुरुरवा का विवाह स्वर्ग के सुंदरी अप्सरा उर्वशी से हुआ था जो पूरे पृथ्वी पर त्रेतायुग मे चंद्रवंश का प्रथम चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा हुए । राजा पुरुरवा के पुत्र आयु हुए और आयु के पुत्र राजा नहुष हुए जिनका विवाह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्री अशोक सुंदरी से हुआ था। राजा नहुष स्वर्ग का राजा भी हुए और सैकड़ों वर्षों तक स्वर्ग पर राज किये। द्वापर युग मे चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा भरत हस्तिनापुर के चक्रवर्ती सम्राट थे। राजा भरत के नाम पर ही भारत देश का नाम रखा गया है। राजा भरत के कुल मे आगे चलकर हस्तिनापुर के राजा प्रतीप हुए जिनका पुत्र राजा शान्तनु हुए और मगध के राजा बृहद्रथ हुए जिनका पुत्र चक्रवर्ती सम्राट महाराज जरासंध हुए। महाराज जरासंध के राजधानी राजगृह (राजगीर) हुआ करता था, जो शिवभक्त और दानवीर थे, माना जाता है की जरासंध के भुजाओं में सौ हाथियों का बल था। जरासंध महाराज एक सत्यवादी राजा थे, जिसका राजधानी राजगृह वो पवित्र भूमि है जहां आज भी मलमास के अपवित्र महीने (मास) में पृथ्वी के सभी देवी-देवता का निवास स्थान राजगृह में होता है। महाभारत में उल्लेख है कि मल्लयुद्ध में भागवत श्री कृष्ण भी जरासंध से अनेकों बार हार गए थे दूसरी ओर हस्तिनापुर के चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा शान्तनु का विवाह देवी गंगा से हुआ, जिनका पुत्र पितामह भीष्म हुए, राजा शांतनु के दूसरा विवाह देवी सत्यवती से हुआ जिनका दो पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य थे। इन दोनों भाइयों का विवाह काशीराज ने राजा के पुत्री अंबिका और अंबालिका से हुआ जिनके पुत्र धृष्टराष्ट्र और पाण्डु हुए। धृष्टराष्ट्र के दुर्योधन सहित सौ पुत्र हुए तो पाण्डु के पांच पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव हुए। बाद में महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर के राजा युधिष्ठिर बने। महाभारत काल के हस्तिनापुर आज भी हस्तिनापुर के नाम से ही जाना जाता है, यह उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में स्थित है. मेरठ शहर से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर गंगा नदी के किनारे है। महाभारत काल के इंद्रप्रस्थ राज का वर्तमान नाम दिल्ली है जो भारत की राजधानी है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रेम चंद्रवंशी तथा संचालन वीरेन्द्र चंद्रवंशी ने किया, मौके पर राजकुमार चंद्रवंशी, अजय चंद्रवंशी, शिक्षक राजीव कुमार, जयशंकर प्रसाद, बसपा नेता अशोक शर्मा, नवल किशोर चंद्रवंशी, पंचायत समिति सदस्य रवीन्द्र चंद्रवंशी और पप्पू मिश्रा, पैक्स अध्यक्ष माधो कुमार भाजपा युवा नेता चंदन शर्मा सहित अनेको गण्यमान्य लोग उपस्थित थे।