मोतिहारी/ राजन द्विवेदी।
सनातन परम्परा में धार्मिक कार्यों के लिए कार्तिक महीने का विशेष महत्व है। इसमें स्नान,दान एवं पूजा-पाठ का पुण्यफलदायक विधान है। कार्तिक स्नान से सुविख्यात यह महीना शरद् पूर्णिमा अर्थात् आश्विन शुक्लपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्लपक्ष पूर्णिमा पर सम्पन्न होता है। इस इस बीच करवा चौथ,रम्भा एकादशी,गौवत्स द्वादशी, धनतेरस, रूप चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी), दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, सौभाग्य पंचमी, छठ पूजा,गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देव एकादशी, वैकुण्ठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली आदि त्योहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान देवोत्थान या देव प्रबोधिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
उन्होंने बताया कि धर्म-कर्म आदि साधना के लिए स्नान करने की सदैव आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त आरोग्य की अभिवृद्धि और उसकी रक्षा के लिए भी नित्य स्नान से कल्याण होता है। विशेषकर कार्तिक महीने का नित्य स्नान अधिक महत्वपूर्ण है।
इस वर्ष कार्तिक महीना 18 अक्टूबर शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है। कार्तिक स्नान आश्विन पूर्णिमा के दिन अर्थात् 17 अक्टूबर गुरुवार से ही प्रारंभ हो जाएगा,जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा 15 नवम्बर शुक्रवार को होगा।
प्राचार्य श्री पाण्डेय ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार कार्तिक महीने में जो लोग ब्रह्ममुहूर्त्त में उठकर नदी,तालाब या अन्य पवित्र जल में स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं,उनपर भगवान की असीम कृपा होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु कार्तिक मास में जल में निवास करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के कारण ही सत्यभामा को श्रीकृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
इस माह मंदिर में जागरण, कीर्तन, दीपदान, तुलसी और आंवले के वृक्ष का पूजन आदि करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। इस मास में किए गए पुण्य कर्म का कभी नाश नहीं होता। कार्तिक स्नान शारीरिक,मानसिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है।
कार्तिक स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को कार्तिक स्नान पर्यन्त लहसुन, प्याज, मसूर की दाल,बैगन, गाजर, मूली, कोहड़ा, खटाई, मांस, मदिरा, धूम्रपान, बासी एवं जूठा भोजन आदि का त्याग करना चाहिए। तथा कड़वे वचन, झूठ बोलने एवं ईर्ष्या-द्वेष से बचना चाहिए। इसके अलावे देवता, गुरु, ब्राह्मण, महात्मा और स्त्री आदि की निन्दा नहीं करनी चाहिए।