राजनीतिक विकास के साथ मानव तस्करी और पलायन क्यों ?

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राजनीतिक विकास के साथ मानव तस्करी और पलायन क्यों ? मानव तस्करी सबसे जघन्य अपराधों में से एक है, जिसे अक्सर आधुनिक गुलामी के रूप में वर्णित किया जाता है। यह अपराध पीड़ितों से उनके सबसे बुनियादी मानवाधिकारों को छीन लेता है और यह दुनिया भर में हो रहा है। पीड़ित, जो ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे हैं, अपने सामान्य जीवन से वंचित हैं और अपने अपराधियों के प्रत्यक्ष लाभ के लिए विभिन्न प्रकार की जबरदस्ती प्रथाओं के माध्यम से अपनी श्रम या यौन सेवाएँ प्रदान करने के लिए मजबूर हैं। शोषण अक्सर डराने-धमकाने, बल प्रयोग, यौन उत्पीड़न और खुद को या अपने परिवार को हिंसा की धमकी देने के माध्यम से होता है। विश्व स्तर पर, यह अनुमान लगाया गया है कि मानव तस्करी सबसे आकर्षक आपराधिक गतिविधियों में से एक है, जिसका मुकाबला केवल नशीली दवाओं और आग्नेयास्त्रों की तस्करी से होता है जिससे परिष्कृत आपराधिक संगठनों के लिए सालाना अरबों डॉलर का सृजन होता है। वैश्विक स्तर पर अनुमानत 40.3 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी के शिकार हैं, जिनमें से लगभग 16 मिलियन लोग निजी अर्थव्यवस्था में जबरन मजदूरी कराते हैं। आधुनिक गुलामी विभिन्न स्थितियों के लिए एक व्यापक शब्द है, जहाँ एक व्यक्ति का विभिन्न प्रकार के लाभ के लिए दूसरों द्वारा शोषण किया जाता है और इसमें बंधुआ या मजबूर श्रम, ऋण बंधन, यौन शोषण, बाल श्रम का सबसे खराब रूप, घरेलू दासता और मानव तस्करी शामिल है।

वैश्विक स्तर पर, भारत में सभी देशों की तुलना में विदेशों में प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है, जहाँ भारत से लगभग 17.5 मिलियन प्रवासी खाड़ी राज्यों, अमेरिका और अन्य गंतव्यों के लिए रवाना हुए हैं। 2016 में एक अनुमान लगाया गया था कि भारत में 8 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में हैं, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो काम के लिए आंतरिक रूप से पलायन करते हैं। मानव तस्करी को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाना और प्रवास-पूर्व प्रशिक्षण लोकप्रिय रणनीतियाँ हैं। दुनियाभर में करीब 2.1 करोड़ लोग मानव तस्करी से पीड़ित हैं। ये मुख्य रूप से वैश्यावृति के धंधे में जबरन धकेले गए हैं अथवा बंधुआ मजदूर हैं। यह आधुनिक गुलामी प्राकृतिक आपदाओं और संघर्ष के बाद और बढ़ रही है।

भारत समेत समूची दुनिया में पलायन कोई अजूबा नहीं है, न ही जिंदा इंसानों की ख़रीद-फ़रोख्त कोई नई चीज़ है। हमारे यहाँ उप्र, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से लोग रोज़गार की तलाश में अपेक्षाकृत संपन्न राज्यों की ओर बड़ी संख्या में पलायन करते हैं। देश के आदिवासी इलाकों से लड़कियों और औरतों की तस्करी बड़ी तादाद में होती है, शहरों से भी बच्चे गुम होकर कहाँ पहुँच जाते हैं, पता नहीं चलता। लगभग सभी प्रदेशों से लोग बेहतर भविष्य के लिए अफ़्रीकी देशों और खाड़ी देशों को जाते हैं। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में अनगिनत भारतीय कई-कई दशकों से बसे ही हुए हैं। उनके साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, सुदूर पूर्व और कई यूरोपीय देश भी भारतीयों के पसंदीदा जगहें हैं। दूसरी तरफ, नेपाली और बांग्लादेशी नागरिक यदि अवैध तरीके से भारत लाए जाते हैं तो भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है।

कुछ समय पहले तक पंजाब में ‘कबूतरबाजी’ और अविभाजित आंध्र में अरब के शेखों द्वारा अल्पसंख्यक लड़कियों के शोषण के किस्से आम थे। ज़ाहिर है, अब गुजरात भी इस कड़ी में शामिल हो गया है। किसी गुजराती परिवार के गैर-कानूनी ढंग से विदेश में बसने के इरादे से जान गंवा देने की घटना शायद पहली बार हुई है, लेकिन बीते सालों में मानव तस्करी की अनेक घटनाएँ अपने आपको ‘गर्वीला’ कहने वाले इस प्रदेश में होती रही हैं। 2012 में तो अहमदाबाद के बाशिंदों ने बच्चों और किशोरों की बढ़ती गुमशुदगी को लेकर 240 दिन तक बड़ा आंदोलन चलाया था। यह तब है जब लगभग तीन दशकों से वहाँ एक ही पार्टी का राज चलते आ रहा है। इसमें भी सबसे लम्बा कार्यकाल मोदीजी का रहा, जिन्होंने विकास के ‘गुजरात मॉडल’ का देश और दुनिया में जमकर प्रचार किया और इस प्रचार ने उनके प्रधानमंत्री बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुजराती स्वभाव से ही उद्यमशील होते हैं, व्यापार उनके खून में होता है -जैसा मोदीजी ने भी अपने बारे में बताया था। गुजरात में कारोबार करना भी दूसरे प्रदेशों की तुलना में आसान है। इसीलिए गुजरात में दूसरे राज्यों की बनिस्बत ज़्यादा तरक्की दिखाई देती है। उसकी जीडीपी भी राष्ट्रीय औसत से अधिक रहती आई है। हालांकि ये सब खूबियाँ वहाँ पहले से मौजूद रही हैं, सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो और चाहे जो उसका मुखिया रहा हो। ‘गुजरात मॉडल’ के साथ तो गुजरात को सोने में सुहागा हो जाना था। लेकिन ऐसा केवल आर्थिक क्षेत्र में ही हुआ, सामाजिक विकास के मोर्चे पर गुजरात अभी भी पिछड़ा हुआ है। यह विडंबना ही है कि राज्य के आर्थिक विकास बावजूद एक परिवार ने अपनी जान की कीमत पर परदेस जाने का जोखिम उठा लिया। वो भी इसलिए कि उस कुनबे के आधे लोग पहले से अमेरिका में हैं जिन्हें बाकी लोगों का गाँव में रह जाना, अपमानजनक लगता था।

2015 में दक्षिण कोरिया में भारतीयों को संबोधित करते हुए मोदीजी ने कहा था कि “एक समय था जब लोग कहते थे- पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किया कि हिंदुस्तान में पैदा हो गए, ये कोई देश है ! ये कोई सरकार है ! ये कोई लोग हैं ! चलो छोड़ो, चले जाओ कहीं और। और लोग निकल पड़ते थे। कुछ वर्षों से हम ये भी देखते थे जब उद्योग जगत के लोग कहते थे कि अब तो यहाँ व्यापार नहीं करना चाहिए, अब यहाँ नहीं रहना है और ज़्यादातर लोगों ने तो एक पैर बाहर भी रख दिया था। मैं इसके कारणों में नहीं जाता हूँ और न ही मैं कोई राजनीतिक टीका-टिप्पणी करना चाहता हूँ लेकिन यह धरती की सच्चाई है कि लोगों में एक निराशा थी, आक्रोश भी था और मैं आज विश्वास से कह सकता हूँ कि अलग अलग जीवन क्षेत्रों के गणमान्य लोग बड़े बड़े साइंटिस्ट क्यों न हो, विदेशों में ही कमाई क्यों न होती हो तो भी आज भारत वापस आने के लिए उत्सुक हो रहे हैं।” मानव तस्करी के कारण- गरीबी, सामाजिक परिस्थितियाँ, प्रवास, मानव अधिकारों के संरक्षण का अभाव, सांस्कृतिक कारक, युद्ध और संघर्ष की स्थिति,प्राकृतिक आपदाएँ, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग, लाभ मकसद, अत्यधिक स्तरीकृत समाज, धमकी और धोखा ,सस्ते श्रम और सेक्स की माँग,रोजगार के अवसरों / बेरोजगारी की कमी। मानव तस्करी की भयावह स्थिति -मानव तस्करी दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ने वाले अपराध उद्योगों में से एक है। इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन और वॉक फ्री के एक अनुमान के मुताबिक , साल 2021 में करीब 2.7 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे थे। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में, लगभग 80% मानव तस्करी आधिकारिक सीमा नियंत्रण बिंदुओं के माध्यम से हुई है जिसमें हवाई अड्डे भी शामिल हैं। इस समय दुनिया भर में 24.9 मिलियन लोग बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। सभी मानव तस्करी के मामलों में लगभग 34% बच्चे शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर जबरन श्रम से सालाना 150 बिलियन डॉलर का आश्चर्यजनक उत्पादन होता है। मानव तस्करी से संबंधित केवल 0.04% मामले ही उचित अधिकारियों को सूचित किए जाते हैं। यूनाइटेड नेशन ऑफिस फॉर ड्रग्स एंड क्राइम रिपोर्ट के अनुसार- 79% पर यौन शोषण मानव तस्करी का सबसे आम रूप है, जिसमें लड़कियाँ और महिलाएँ सबसे आम पीड़ित हैं। विडंबना यह है कि विशेष रूप से महिला तस्करी से जुड़े सभी तस्करों का सबसे बड़ा हिस्सा खुद महिलाएँ हैं। जबरन श्रम मानव तस्करी का दूसरा सबसे आम रूप है, जिसमें कुल हिस्सेदारी का 18% हिस्सा है। यौन शोषण के सभी पीड़ितों में से 21% बच्चे हैं। सभी मानव तस्करी पीड़ितों में से 71% महिलाएँ और लड़कियाँ हैं। अंतर्राष्ट्रीय तस्करी को आम तौर पर तस्करी का सबसे आम रूप माना जाता है लेकिन वास्तव में, घरेलू और अंतर-क्षेत्रीय मानव तस्करी एक प्रमुख रूप है। मानव तस्करी को रोकने के उपाय- अपने समुदाय में जागरूकता फैलाएं, प्रत्येक व्यक्ति को उन संसाधनों तक समान पहुँच नहीं है जिनकी उन्हें आवश्यकता है। आप यह उनहें सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। मानव तस्करी का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ढांचा- मानव तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय ढांचा मजबूत है और इस अमानवीय अपराध को रोकने के लिए अथक प्रयास कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय हस्तक्षेप निम्नलिखित हैं:व्-हाइट स्लेव ट्रैफिक के दमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौता (1904) ,महिलाओं और बच्चों में यातायात के दमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (1921), दासता सम्मेलन (1926), आइएलओ का जबरन श्रम सम्मेलन (1930),पूर्ण आयु की महिलाओं में यातायात के दमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1848),व्यक्तियों के अवैध व्यापार और दूसरों के वेश्यावृत्ति के शोषण के दमन के लिए अभिसमय (1949), प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के संरक्षण पर कन्वेंशन (1990), विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और दंडित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल (2000) , उपरोक्त हस्तक्षेपों के साथ-साथ 1997 में स्थापित ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय मानव तस्करी के खिलाफ लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है। मानव तस्करी के जघन्य अपराध की गहराई अथाह है और हम जितना जानते हैं उससे कहीं अधिक इसमें है। इस प्रकार मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है। मानव तस्करी के बारे में उचित समझ विकसित की जानी चाहिए क्योंकि जागरूकता की कमी मानव तस्करी विरोधी प्रयासों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी विरोधी कानूनों और विनियमों का उचित और सख्त कार्यान्वयन हाथ में एक महान शॉट होगा। मानव तस्करी से बेहतर तरीके से लड़ने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और अन्य स्वैच्छिक संगठनों को मजबूत,समर्थित और आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार को मानव तस्करी के खिलाफ निवारक ढांचे को मजबूत करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए-स्कूल स्तर पर ही बच्चों को तस्करी के खिलाफ शिक्षित करना,महिला सशक्तिकरण,अधिक रोजगार के अवसर सृजित करना,मानव तस्करी गतिविधियों की संभावना वाले क्षेत्रों में निगरानी बढ़ाना,आपदा राहत और बचाव कार्यों की निगरानी करने की भी आवश्यकता है क्योंकि प्राकृतिक आपदाएँ बड़े पैमाने पर प्रभावित आबादी को तस्करी के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई में तकनीकी सहायता भी महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करेगी।बेहतर सहयोग और डेटा साझा करने को बढ़ावा दिया जाएगा। शोधार्थी रुपेश रॉय राजनीति विज्ञान विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा