
मोतिहारी, राजन द्विवेदी।
शनि-प्रदोष व्रत एवं धन्वंतरि जयंती सहित धनत्रयोदशी (धनतेरस) का प्रसिद्ध पर्व प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि मिलने के कारण आज शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को धनत्रयोदशी व धन्वंतरि जयंती दोनों मनाने का विधान है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन में कलश के साथ भगवती लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसके प्रतीक स्वरूप ऐश्वर्य वृद्धि के लिए इस दिन शुभ मुहूर्त्त में नई चीज खासकर बर्तन,सोना-चाँदी आदि खरीदकर घर लाने की परंपरा है। इस दिन धन का अपव्यय नहीं किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन का अपव्यय रोकने से अगले वर्ष धन का संचय होता है।
उक्त जानकारी महर्षिनगर नगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार धनतेरस को प्रदोषकाल (सायंकाल) में जो अपने घर के दरवाजे पर घी का दीपक जलाता है,उसे अकाल मृत्यु या दुर्मरण का भय नहीं होता। इस दिन दीपदान करने से मृत्यु,पाश,दण्ड,काल व लक्ष्मी के साथ सूर्यनंदन यम प्रसन्न होते हैं।
भागवत महापुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अंशावतार ही कालांतर में धन्वंतरि के नाम से प्रसिद्ध हुए और आयुर्वेद के प्रवर्तक कहलाए। इनका आविर्भाव कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को हुआ था। आज भी प्रतिवर्ष इस तिथि को आरोग्य के देवता के रूप में इनकी जयंती धूमधाम से मनायी जाती है।
धनतेरस पर खरीददारी के लिए शुभ मुहूर्त्त- कुम्भ लग्न दिन में 02:21 से 03:52 बजे तक और वृष लग्न रात्रि 06:59 से 08:56 बजे तक प्रशस्त है। निशीथकाल सिंह लग्न में पूजन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए रात्रि 01:27 से 03:41 बजे तक का मुहूर्त्त प्रशस्त है।