चंपारण की खबर::हरितालिका (तीज) एवं चौथ चन्दा व्रत 06 को तो ऋषिपंचमी व्रत 08 को मनाया जाएगा : सुशील पांडेय

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मोतिहारी / राजन द्विवेदी ।

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का द्योतक पर्व हरितालिका (तीज) का अत्यन्त कठिन व्रतोपवास 06 सितम्बर शुक्रवार को किया जाएगा। सौभाग्यवती स्त्रियाँ चिरस्थायी सौभाग्य की कामना से तथा अविवाहित कन्यायें मनोनुकूल वर प्राप्त कर भविष्य में सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना से इस व्रत को बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ करतीं हैं। बिहार में प्रचलित चौथ चन्दा (ढेलहिया चौथ) एवं चन्द्र पूजा का मान भी इसी दिन अर्थात् 06 सितम्बर शुक्रवार को ही है। इस दिन चन्द्रमा को देखना निषेध माना गया है। वही वैनायकी सिद्धि विनायक श्रीगणेश चतुर्थी का प्रसिद्ध पर्व गणेशोत्सव के साथ 07 सितम्बर शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन से देशव्यापी गणेश उत्सव प्रारंभ हो जाएगा। साथ ही ऋषि पंचमी व्रत का मान 08 सितम्बर रविवार को मध्याह्न व्यापिनी पंचमी तिथि में होगा।
यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
उन्होंने बताया कि तीज व्रत वैधव्य दोष नाशक व पुत्र-पौत्रादि को बढ़ाने वाला होता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार जैसे नक्षत्रों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में सामवेद व इन्द्रियों में मन श्रेष्ठ है। ठीक उसी तरह व्रतों में हरतालिका व्रत श्रेष्ठ है। जो स्त्रियां इस व्रत को निष्ठा एवं श्रद्धा पूर्वक करतीं हैं वे समस्त ज्ञाताज्ञात पापों से मुक्त होकर सांसारिक भोग,सायुज्य,संतान सुख,धन-धान्य व अखंड सौभाग्य सुख के साथ मनोवांछित फल प्राप्त करतीं हैं।
बताया कि व्रत के दिन महिलाएं शुद्ध शरीर व मन से उपवास रहते हुए प्रदोषकाल के समय पार्वती सहित भगवान शिव की पूजा करें और रात्रि में मंगलगीत गाते हुए जागरण करें। दूसरे दिन प्रातःकाल बांस के पात्र में अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि रखकर ब्राह्मण को दान देने के बाद पारण करें।
प्राचार्य पाण्डेय ने चौथ चन्दा व्रत के बारे में बताया कि भगवान गणेश जहां भक्तों के लिए विघ्न विनाशक हैं वहीं दुष्टों के लिए विघ्नकर्ता भी हैं। इनकी उपासना से जहां कार्य में सफलता मिलती है वही ज्ञान में वृद्धि भी होती है। व्रत के दिन भगवान गणेश की प्रतिमा पर सिन्दूर चढ़ाना चाहिए और लड्डू का भोग लगाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि ऋषि पंचमी व्रत का मान मध्याह्न व्यापिनी पंचमी तिथि में 08 सितम्बर रविवार को है। इस दिन मध्याह्न काल में नदी,तालाब आदि निर्मल जलाशयपर जाकर अपामार्ग (चिचिड़ा) की एक सौ आठ दातुन से दन्तधावन कर तथा शरीर में मिट्टी का लेपन कर जल में स्नान करना चाहिए। साथ ही पंचगव्य का प्राशन कर अपामार्ग व कुशा से निर्मित अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की प्रतिमा को सर्वतोभद्र की वेदी पर स्थापित कर निष्ठा पूर्वक पूजन करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से रजस्वला दोष सहित शरीर अथवा मन से किया गया समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का अनुष्ठान सात वर्षों तक करने का विधान है।