मोतिहारी / राजन द्विवेदी।
आज भगवान परशुराम की जयंती एवं अक्षय तृतीया का अत्यंत पवित्र व पुण्यफलदायक पर्व मनाया जाएगा।
अक्षय का शाब्दिक अर्थ है जिसका क्षय नहीं हो । जो अक्षय,अविनाशी,अखंडित सदैव पूर्ण हो,स्थाई हो। प्रत्येक वर्ष में ऐसी एक ही तिथि है वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया,इसे ही अक्षय तृतीया या आखातीज कहते हैं। अक्षय तृतीया का दिन अति पवित्र माना गया है। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
उन्होंने बताया कि यह पर्व लक्ष्मी एवं विष्णु की आराधना का विशेष पर्व है। इसका भी एक कारण है,जिस तरह सामाजिक व्यवस्था को संतुलित बनाए रखने के लिए धर्मार्थकाममोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की आवश्यकता है और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसी तरह विष्णु के साथ लक्ष्मी आती है तो आदरणीय,सौम्य रूप में आती है वरना लक्ष्मी तो चंचला हैं। प्राचार्य पाण्डेय ने बताया कि अक्षय तृतीया की तिथि को ईश्वर तिथि भी कहते हैं। साथ ही यह तिथि भगवान परशुराम का जन्मदिन होने से परशुराम तिथि कहलाती है। भगवान परशुराम की गणना चिरंजीवी ऋषियों में है,इस कारण अक्षय तृतीया को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं।इस दिन नर-नारायण जयंती,हयग्रीव जयंती तथा परशुराम जयंती मनायी जाती है। आज के दिन सुहागिन स्त्रियाँ और कन्यायें गौरी पूजा भी करती है। अक्षय तृतीया आत्म निरीक्षण व आत्म अवलोकन का भी दिन है।