प्राईवेट स्कूलों का गोरखधंधा,किताब और कॉपी के नाम पर लूट खसोट

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किताबों के साथ कॉफी और कवर नहीं लेने पर किताब देने से इंकार कर रहे दूकानदार*

*असरफ आलम केसरिया(पूर्वी चंपारण)*


अप्रैल माह से शैक्षिक सत्र की शुरुआत होने के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी शूरु हो गई है। यहां बता दें कि स्कूल धड़ल्ले से कापी किताबों की बिक्री के साथ ही फीस भी बढ़ा चुके हैं। वहीं अफसरों ने निजी स्कूलों के दुकान बनने पर कार्रवाई की घुड़की दी थी, लेकिन न कोई जांच हुई और न कार्रवाई। इससे प्राईवेट स्कूल के संचालक और डायरेक्टर की चांदी कट रहीं हैं।तथा इसके साथ ही कई प्राईवेट स्कूल कापी किताबों के साथ यूनीफार्म, टाई बेल्ट तक स्कूलों से ही बेच रहे हैं। कुछ स्कूल जांच की लपेट में न आ जाएं इसके लिए दुकान सेट किए हैं, स्कूलों द्वारा तय किए गए एक दुकान के अलावा उनके स्कूल में चलने वाली किताबें दूसरी किसी दुकान में नहीं मिलना कमीशनखोरी में संलिप्तता को दर्शाता है।इससे आर्थिक कमजोर बच्चों को और अभिभावकों को काफी परेशानीयो का सामना करना पड़ता है।विदित हो की सरकार भले ही नई शिक्षा नीति से तमाम परिवर्तन का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन इन स्कूलों की निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता होने के बावजूद यहां पर अवैध रुप से पीजी, एलकेजी व यूकेजी की कक्षाएं संचालित होतीं हैं। इनके जरिए भी इन स्कूलों की मोटी कमाई होती है। वहीं मौजूदा वक्त में इन स्कूलों में भारी लूट खसोट मचा हुआ है।खूद को साफ सुथरा छवी के स्कूल के संचालक मानने वाले इन स्कूलों के जिम्मेदार कमीशनखोरी के आगे शासक के निर्देश को रद्दी टोकरी में डालकर मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसमें स्कूल संचालक के साथ साथ किताब के दूकानदार की भी बराबर की संलिप्तता तब उजागर हुआ जब विद्यालय के संचालक किताब का लिस्ट बच्चे और अभिभावकों को देते हैं जिसपर सिर्फ एक हीं दूकान का नाम लिखा रहता है।और वह किताब भी उसी दूकान में हीं मीलता है। बहुत से अभिभावकों का कहना है कि बड़ी संख्या में स्कूलों ने बेसिक शिक्षा परिषद से कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता ले रखी है। इसमें हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम दोनों की मान्यता है। मान्यता के साथ ही परिषद की ओर से पाठ्यक्रम और पुस्तकें भी निर्धारित हैं, लेकिन स्कूल संचालक खुद अपना सिलेबस तय करके अपनी सुविधा के अनुसार प्रकाशकों से पुस्तकें छपवाकर उनकी मनमानी कीमत निर्धारित करके उससे बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं। जानकारी के अनूसार अधिकतर स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं है। यहां कम शैक्षिक योग्यता वाले अप्रशिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षण कार्य में लगाया जाता है। इससे इस तरह के शिक्षकों को कम वेतन देकर अधिक मुनाफा कमा लेते हैं। और विभाग के आलाधिकारी इन सब बातो को नजरंदाज कर कान में तेल डालकर गहरी नींद में सो रहे हैं।