आधुनिक भारत के निर्माण में भारतरत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर का योगदान

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  • भीमराव आंबेडकर के प्रथम विद्यालय में नामांकन 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं।
  • आंबेडकर 1918 में मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने।
  • आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 वर्ष तक के समय के बीच उन्होंने ने विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया।
  • आंबेडकर लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था।
    *आम्बेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय थे।
  • आम्बेडकर समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय समाज को समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रस्तावनाएं दी। डॉ. अम्बेडकर ने आधुनिकीकरण को समाजिक और आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण माना था। आधुनिकीकरण का मतलब है समाज, अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी, विज्ञान, और अन्य नवाचारों का उपयोग करके समाज को सुधारना।
    डॉ. अम्बेडकर का महत्वपूर्ण संदेश था कि समाज को आधुनिकीकरण की दिशा में अग्रसर करने के लिए हमें समाज में समानता, न्याय और समरसता के मूल्यों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्होंने समाज में सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए प्रौद्योगिकी, शिक्षा और समाजिक परिवर्तन के माध्यमों का प्रयोग करने की महत्वपूर्णता पर भी जोर दिया। उनका जिस जाति में जन्म हुआ कोई उस समय सोच भी नहीं सकता था कि आर्थिक सामाजिक राजनीतिक विषयों का वे कभी हिस्सा भी बन पाएंगे। पर शिक्षा और संघर्ष ऐसी चीज है जो मनुष्य की पहचान और व्यक्तित्व में निखार लाता है, और यह कथन बाबासाहेब ने सिद्ध करके दिखाया। यही वजह रही कि जिस जाति के लोगों की समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में कोई हिस्सेदारी तक नहीं थी उनके बीच से निकलकर बाबासाहेब आधुनिक भारत के निर्माता बने और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों का अहम विषय बने। डॉ. अंबेडकर समाज सुधारक के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री भी थे।
    बाबासाहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर 20वीं सदी के सबसे बड़े विचारकों में एक हैं। वर्तमान सदी भी भारत में डॉ० आंबेडकर के प्रभाव की सदी है। डॉ० आंबेडकर की लोकप्रियता और स्‍वीकार्यता के पीछे उनका विशद अध्‍ययन, तार्किक लेखन और वंचित समूहों के लिए परिवर्तनकामी भूमिका है। शिक्षा का क्षेत्र भी उनके योगदान से अछूता नहीं है, लेकिन डॉ० आंबेडकर का मूल्‍यांकन करते वक्‍त इसकी कम बात होती है। उनके मशहूर नारे ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ में शिक्षा पहले स्‍थान पर है। शिक्षा के बारे में उन्होंने कहा, ‘शिक्षा वह है, जो व्‍यक्ति को निडर बनाये, एकता का पाठ पढ़ाये, लोगों को अधिकारों के प्रति सचेत करे, संघर्ष की सीख दे और आजादी के लिए लड़ना सिखाये।’
    अम्बेडकर इस्राईल के लोगों के मुक्तिदाता मोजिज़ की तरह अपने लोगों को जगाने, संगठित करने, अपनी शक्ति से परिचित कराने तथा सम्मानसहित अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। उन्होंने दलितों को “शिक्षित हो, संघर्ष करो और संगठित हो” का नारा देकर मुक्ति का रास्ता दिखाया।
    बाबासाहेब ने केवल अछूतों की मुक्ति के लिए ही संघर्ष नहीं किया बल्कि उन्होंने राष्ट्र के निर्माण एवं भारतीय समाज के पुनर्निर्माण में कई तरीकों से महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अपने देश के लोगों को बहुत प्यार करते थे तथा उन्होंने उनकी मुक्ति और खुशहाली के लिए बहुत काम किया।
    भारत के भावी संविधान के निर्माण के सम्बन्ध में 1930 तथा 1932 में इंग्लैण्ड में गोलमेज़ कांफ्रेंस बुलाई गयी जिसमें उन्हें डिप्रेस्ड क्लासेज़ के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया तो इसका गाँधी जी ने बहुत विरोध किया। डॉ. आंबेडकर ने अपने भाषण में अँग्रेज़ सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा, “अँग्रेज़ सरकार ने हमारे उद्धार के लिए कुछ भी नहीं किया है। हम इस से पहले भी अछूत थे और अब भी अछूत हैं। यह सरकार दलित हितों की विरोधी है तथा उनकी मुक्ति और अपेक्षाओं के प्रति उदासीन है। यह सरकार ऐसा जानबूझकर कर रही है। केवल लोगों की सरकार, लोगों के लिए सरकार और लोगों द्वारा सरकार स्थापित होने पर ही उनका भला हो सकता है। अतः हमारी पहली मांग है – स्वराज.” इस संक्षिप्त उद्धरण से बाबासाहेब की देश प्रेम और स्वंत्रता की चाह का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
    बाबा साहेब चाहते थे कि मजदूरों को केवल बेहतर कार्य स्थिति से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए बल्कि उन्हें राजनीति में भाग लेकर राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त करनी चाहिए। बाबासाहेब जानते थे कि भारत की निरंतर बढ़ती आबादी भी उस के पिछड़ेपन का कारण है। इसलिए उन्होंने 1940 में बम्बई एसेम्बली में परिवार नियोजन योजना लागू करने का बिल प्रस्तुत किया था परंतु वह पास नहीं हो सका था। इससे भी उनके देश प्रेम की झलक मिलती है।
    उन्होंने 1942 में स्वतंत्र मजदूर पार्टी भंग करके “शैड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन” नाम की पार्टी की स्थापना की तथा दलित वर्ग की अखिल भारतीय स्तर की कांफ्रेंस की। उन्होंने दलित महिलाओं का भी सम्मेलन किया। वे चाहते थे कि महिलायों को अपनी मुक्ति और अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को शराबबंदी लागू करने के लिए संघर्ष करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने महिलाओं को सलाह दी कि यदि उनका पति शराब पीकर घर आये तो वे उसे खाना न दें। इस से बाबा साहेब की महिलाओं की मुक्ति संबंधी चिंता का आभास मिलता है।
    डॉ० आंबेडकर ने सबसे पहले बॉम्बे लेजिस्‍लेटिव काउंसिल में एक कानूनविद की हैसियत से 12 मार्च, 1927 को भारतीय समाज में शिक्षा के बारे में कुछ जरूरी सवाल उठाये। यह उनके लिए बेहद चिंता का विषय था कि हमारे देश ने शिक्षा के मामले में प्रगति नहीं की। उस समय भारत सरकार द्वारा शिक्षा के बारे में प्रस्‍तुत रिपोर्ट के मुताबिक देश के स्‍कूल जाने की उम्र के लड़कों को 40 साल और लड़कियों को 100 से अधिक साल लगते। इसकी वजह उन्‍होंने शिक्षा के क्षेत्र में बजट की कमी बतायी। वे कहते हैं, ‘हम शिक्षा पर कम से कम उतनी राशि तो खर्च करें ही, जितनी हम लोगों से उत्‍पाद शुल्‍क के रूप में लेते हैं।’ इसी क्रम में डॉ० आंबेडकर ने विद्यार्थियों की ड्रॉप-आउट दर पर भी चिंता जतायी। इसके लिए उन्‍होंने उपाय सुझाया कि प्राथमिक शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च किया जाये।
    ‌ डॉ० आंबेडकर ने शिक्षा के व्‍यावसायीकरण की समस्‍याओं को सौ साल पहले पहचान लिया था। वे कहते हैं, ‘शिक्षा तो एक ऐसी चीज है, जो सबको मिलनी चाहिए। शिक्षा विभाग ऐसा नहीं है, जो इस आधार पर चलाया जाये कि जितना वह खर्च करता है, उतना विद्यार्थियों से वसूल किया जाये। शिक्षा को सभी संभव उपायों से व्‍यापक रूप से सस्‍ता बनाया जाना चाहिए।’ डॉ० आंबेडकर के लिए चिंता का मूल विषय था- देश में व्‍याप्‍त सामाजिक असमानता। इसको समाप्‍त कर देश में समानता लाने में वे शिक्षा की अहम भूमिका मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा सहित जीवन के विविध क्षेत्रों में आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए सहानुभूतिपूर्ण रवैये का सिद्घांत अपनाया जाना चाहिए। वे ऐसे लोकतांत्रिक पाठ्यक्रम के पक्षधर थे, जिसे संबंधित विषयों के अध्‍यापक विद्यार्थियों और विषय की जरूरत के हिसाब से बनायें। उन्होंने हमेशा पूर्ण एवं अनिवार्य शिक्षा का पक्ष लिया और तकनीकी शिक्षा पर बल दिया। वे कमजोर वर्गों को विभिन्‍न प्रकार का छात्रवृत्तियाँ देने के पक्षधर थे और उच्‍च शिक्षा की जरूरत भी वे बराबर रेखांकित करते रहते थे। वे शिक्षा और नौकरियों के क्षेत्र में वंचितों की रुचि जगाने और उनका प्रतिनिधित्‍व सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए सीटें आरक्षित करने के विचार के जन्‍मदाता थे।
    डॉ० आंबेडकर ने व्‍यक्तिगत स्‍तर पर भी शिक्षा, खासतौर पर वंचितों के लिए शिक्षा के लिए कई महत्‍वपूर्ण कार्य किये। उन्‍होंने 1924 की शुरूआत में बहिष्‍कृत हितकारिणी सभा के गठन से ही इस क्षेत्र में कार्य शुरू कर दिया था। सभा ने शिक्षा को प्राथमिकता बनाया और खासकर पिछड़े वर्गों के बीच उच्‍च शिक्षा और संस्‍कृति के विस्‍तार हेतु महाविद्यालय, छात्रावास, पुस्‍कालय, सामाजिक केन्‍द्र और अध्‍ययन केंद्र खोले। सभा की देख-रेख में विद्यार्थियों की पहल पर ‘सरस्‍वती बेलास’ नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। इसने 1925 में सोलापुर और बेलगांव में छात्रावास और बंबई में मुफ्त अध्‍ययन केंद्र, हॉकी क्‍लब और दो छात्रावास खोले। डॉ० आंबेडकर ने 1928 में डिप्रेस्‍ड क्‍लास एजुकेशनल सोसाइटी का गठन किया। उन्‍होंने 1945 में समाज के पिछडे़ तबकों के बीच उच्‍च शिक्षा फैलाने के लिए लोक शैक्षिक समाज की भी स्‍थापना की। इस संस्‍था ने पर्याप्‍त संख्‍या में कॉलेज और माध्‍यमिक विद्यालय खोले। कुछ छात्रावासों को डॉ० आंबेडकर ने वित्‍तीय सहायता भी दी। निष्‍कर्षत: डॉ० आंबेडकर तर्कशील समाज पर आधारित एक आधुनिक भारत का निर्माण करना चाहते थे। जब तक इसकी जरूरत बनी रहेगी, उनके शेष विचारों के साथ शिक्षा संबंधी विचार भी प्रासंगिक बने रहेंगे।
    वित्त आयोग की स्थापना और डॉ.अंबेडकर- बाबासाहेब ने जो पीएचडी की उसके थीसिस के तौर पर केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंधों के बारे में जो तर्क और विचार पेश किए, उससे आजादी के बाद भारत में केंद्र और राज्यों के आर्थिक संबंधों का खाका तैयार किया गया। इस तरह भारत में वित्त आयोग के गठन का श्रेय बाबासाहेब और उनके थीसिस  को जाता है। बाबासाहेब भारत की बढ़ती आबादी के कारण उपजी गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी आदि समस्यायों के बारे में बहुत चिंतित थे। अतः वे खेती को अधिक उन्नत करना चाहते थे। वास्तव में वे इसे उद्योग का दर्जा देना चाहते थे। अतः उन्होंने सम्पूर्ण कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण करके रूस की भांति सामूहिक खेती का प्रस्ताव रखा ताकि कृषि का मशीनीकरण हो सके। इस के लिए वे नदी सिंचाई की योजनाओं को लागू करना चाहते थे। उन्होंने नदियों पर बाँध बना कर उनसे नहरें निकालने तथा बिजली पैदा करने की योजनायें बनायीं थीं। इस प्रकार वे नदियों की बाढ़ से होने वाली तबाही को खुशहाली के साधन बनाना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने भारत में सर्वप्रथम “दामोदर नदी घाटी” की योजना बनायी जो अमेरिका की “टेनिस वेली अथारिटी” की तरह की थी। इसी प्रकार उन्होंने भारत की अन्य नदियों के जल का उपयोग करने की योजनायें भी बनायीं थीं। बाबासाहेब कृषि की छोटी जोतों को ख़त्म करके उसे लाभकारी बनाना चाहते थे। वे खेती से बेशी मजदूरों को अधिक औद्योगीकरण करके उत्पादक श्रम में बदलना चाहते थे।
    रिजर्व बैंक की स्थापना और बाबा साहेब- 1923 में बाबा साहेब की भारतीय मुद्रा और अर्थव्यवस्था से संबंधित एक पुस्तक आई जिसका नाम था “दी प्राब्लम आफ दी रुपी- इट्स ओरिजीन एंड इट्स सोल्यूशन”(रुपया का समस्या – इसके मूल और इसके समाधान) और इसी पुस्तक से शुरू हुई भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की कहानी। बैंक की कार्य पद्धति और इसका दृष्टिकोण बाबा साहब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने रखा जब 1926 में यह कमीशन भारत में रॉयल कमिशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस के नाम से आया था। तब इसके सभी सदस्यों ने बाबा साहेब की पुस्तक द प्रॉब्लम ऑफ रूपी – इट्स ओरिजन एंड इट्स सॉल्यूशन की वकालत की। फिर ब्रिटिशों की लेजिसलेटिव असेंबली ने इसे कानून का स्वरूप दिया और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया और इस तरह बाबासाहेब के योगदान के फल स्वरुप 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
    बाबासाहेब का यह निश्चित मत था कि औद्योगीकरण के बिना भारत की बेरोज़गारी, गरीबी एवं उपभोक्ता वस्तुओं की कमी दूर नहीं की जा सकती। इसके विपरीत गाँधी जी मशीनों के प्रयोग और औद्योगीकरण के कट्टर विरोधी थे। बाबासाहेब यह भी जानते थे कि बिजली के बिना औद्योगीकरण संभव नहीं है। अतः उनका विचार था कि हमें सस्ती बिजली बनानी चाहिए। बाबासाहेब नदियों पर बांध बांधकर बिजली पैदा करना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने दामोदर घाटी योजना बनायी तथा सेंट्रल वाटरवेज़, इर्रीगेशन एंड नेवीगेशन कमीशन की स्थापना की। इसका तथा कमीशन का मुख्य काम प्रान्तों को कृषि, सिंचाई एवं बिजली उत्पादन सम्बन्धी परामर्श देना था। इनके सहयोग से बाद में कई बड़ी बहुउद्देशीय नदी योजनायें बनायीं गयीं जिनसे बिजली के उत्पादन के साथ-साथ कृषि सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण में सहायता मिली। बाबासाहेब ने ही बिजली के उत्पादन एवं सुचारू वितरण के लिए पावर ग्रिड, केन्द्रीय तथा राज्य बिजली बोर्डों की स्थापना भी की थी। वास्तव में बाबासाहेब ने बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंतरण, कृषि सिंचाई एवं बहुद्देशीय नदी योजनाएँ बनाकर भारत के औद्योगीकरण की नींव रखी थी। बाबासाहेब भारत के नव निर्माण, औद्योगीकरण, कृषि विकास एवं सिंचाई, बाढ़ नियंतरण, नदी यातायात तथा बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष तौर पर प्रयासरत थे जिससे उन्होंने भारत के आधुनिकीकरण की नींव रखी। उन्होंने वायसराय की कार्यकारिणी के श्रम सदस्य के रूप में भारत के औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण में जो महान योगदान दिया है, उस के लिए भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा।
    डॉ० भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख विधि वेता, समाज सुधारक थे। सामाजिक भेदभाव और विषमता का पग-पग पर सामना करते हुए अंत तक झुके नहीं, अपने अध्ययन, परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन व सम्मान दिया। बाबासाहेब ने रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिला रोजगार कार्यालयों की स्थापना की थी।बाबासाहेब के सुझाव पर ही भारत में रुपए का आधार चाँदी की जगह सोना बनाया गया था और रुपए का पाउंड के बदले मूल्य निर्धारित किया गया था। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। हिंदू पंथ में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सन 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।
    इस प्रकार, डॉ. अम्बेडकर का सोचने-समझने, समाज सुधार, और आधुनिकीकरण के प्रति उनका सहसा प्रेरक है।
    रुपेश रॉय
    राजनीति विज्ञान विभाग
    ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा