सावधान! आप निगरानी में हैं, अकेले में भी बच्चों की अश्लील फिल्में देखना ‘निजता’ के दायरे में नहीं
*मद्रास हाई कोर्ट के फैसले की समीक्षा करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश बच्चों की अश्लील फिल्में देखने वालों के लिए एक सख्त चेतावनी
घर के एकांत में भी बच्चों की अश्लील फिल्में डाउनलोड करने और देखने को आप निजता का मामला बता कर इस अपराध से बच नहीं सकते, क्योंकि जिला पुलिस और विभिन्न केंद्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ आप पर निगरानी रख रही हैं। बच्चों की अश्लील फिल्में देखने और अश्लील सामग्रियाँ डाउनलोड करने को अपराध नहीं ठहराने के मद्रास हाई कोर्ट के फैसले की समीक्षा के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह सख्त संदेश गया है कि बाल पोर्न देखने पर आप निजता का हवाला देकर नहीं बच सकते। शीर्ष अदालत का यह फैसला उन सभी लोगों के लिए चेतावनी है जो सोचते हैं कि अकेले में बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियाँ देखना अपराध नहीं है। बाल पोर्नोग्राफी पर मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को ‘भद्दा और बेतुका’ बताते हुए तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने यह आदेश गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” की याचिका पर दिया जिसने, मद्रास हाई कोर्ट के हालिया फैसले को चुनौती दी थी।
आदेश का स्वागत करते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के गठबंधन सहयोगी गैरसरकारी संगठन इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट फाउंडेशन (आइडीएफ) के कार्यक्रम प्रभारी मोo शकील अनवर ने कहा कि, “यह एक महत्वपूर्ण दिन है जो यह दिखाता है कि कोई व्यक्ति कहीं अकेले में भी बाल पोर्न देख रहा है तो वह जिला, राज्य और केंद्र सहित पूरी दुनिया की तमाम एजेंसियों की नजर और निगरानी में है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो तात्कालिकता और गंभीरता दिखाई है वह बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई में एक अहम कदम है।”
मद्रास हाई कोर्ट ने एक चर्चित आदेश में चेन्नई के 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर और आपराधिक कार्रवाई को खारिज करते हुए कहा था कि बाल पोर्नोग्राफी देखना पॉक्सो अधिनियम, 2012 के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता। आरोपी ने अपने मोबाइल में बच्चों की अश्लील फिल्में और वीडियो डाउनलोड कर रखे थे। खास बात यह है कि इस बाबत पुलिस ने बगैर किसी शिकायत के सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर खुद ही मामला दर्ज किया था। छानबीन के दौरान पुलिस ने आरोपी के मोबाइल से बच्चों से जुड़ी सामग्रियों की दो फाइलें बरामद की।
हाई कोर्ट ने यह कहते हुए मामले को खारिज कर दिया कि आरोपी ने महज बाल पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्रियाँ डाउनलोड कर इसे अकेले में देखा, उसने इसे कहीं भी प्रसारित या वितरित नहीं किया। लेकिन पांच गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन "जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस", जिसके 120 से ज्यादा सहयोगी हैं और "बचपन बचाओ आंदोलन" ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। यह गठबंधन पूरे देश में बच्चों के यौन उत्पीड़न, चाइल्ड ट्रैफिकिंग यानी बाल दुर्व्यापार और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहा है।
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए एलायंस ने याचिका में कहा कि इस फैसले से आम जनता में यह संदेश गया है कि बाल पोर्नोग्राफी देखना और इसके वीडियो अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है। इससे बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े वीडियो की माँग और बढ़ेगी और लोगों का इसमें मासूम बच्चों को शामिल करने के लिए हौसला बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली "जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस" की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर खुशी जाहिर करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एच. एस. फूलका ने कहा, “यह न्याय का अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में ऐतिहासिक पल है जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि एक आपराधिक मामले में भी कोई तीसरा पक्ष जो कि सीधे इस अपराध से प्रभावित नहीं है, ऊपरी अदालतों का रुख कर सकता है अगर उसे लगता है कि न्याय नहीं हुआ है।”
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह मामला पॉक्सो के दायरे में नहीं आता क्योंकि आरोपी ने बाल पोर्नोग्राफी के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया। लिहाजा इसे ज्यादा से ज्यादा आरोपी का नैतिक पतन कहा जा सकता है। अदालत ने आरोपी को बरी करने के लिए आईटी और पॉक्सो एक्ट के तहत दिए गए केरल हाई कोर्ट के एक फैसले का सहारा लिया।
"जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस" ने अपनी याचिका में कहा कि इस मामले में केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा करना एक चूक थी। एलायंस ने कहा, “सामग्रियों की विषयवस्तु एवं प्रकृति से स्पष्ट है कि यह पॉक्सो के प्रावधानों के तहत आता है और यह इसे उस मामले से अलग करती है जिस पर केरल हाई कोर्ट ने फैसला दिया था।”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में बाल पोर्नोग्राफी के मामले में तेजी से इजाफा हुआ है। देश में 2018 में जहाँ 44 मामले दर्ज हुए थे वहीं 2022 में यह बढ़कर 1171 हो गए।